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तेरे आने से

कविता चार भाइयों की इकलौती बहन वह भी सबसे छोटी। सब भाई उसके आगे-पीछे घूमते और उसकी फरमाइशें पूरी करते।

लाड-प्यार ने उसे बिगाड़ दिया पढ़ाई के नाम पर वह फिसड्डी रह गई। पढ़-लिख कर चारों भाई नौकरी पर लग गए, दो भाइयों शादी भी हो गई।
भाभियाँ भी कविता से स्नेह रखती।

कविता के पिता और भाइयों ने निर्णय लिया कि तीसरे भाई की शादी करने से पहले कविता की शादी कर दी जाए।

उसके लिए वर की तलाश शुरू कर दी गई।
जल्दी ही उन्हें वर मिल गया। इकलौता बेटा एक बहन जिसकी शादी हो गई। पिता का देहान्त हो गया था। घर में सिर्फ माँ और बेटा ही थे।

पिता और भाइयों ने लड़के की अच्छाई की खूब जाँच परख की कहीं कोई बुरा शौक तो नहीं। सब कुछ पता लगाने के बाद उन्होंने कविता की शादी बड़ी धूमधाम से कर दी।

कविता खुशी-खुशी ससुराल आ गई। ननद और सासु माँ ने अच्छी आवभगत की। कविता भी खुश थी। चार-पाँच दिन अच्छे गुजरे। उसके पति की छुट्टियाँ समाप्त हो गई, वह ऑफिस चला गया।
कविता अपने कमरे में बाल संवार रही थी कि उसकी सासु माँ अंदर आई और बोली, "बहू ये ज्वेलरी उतार कर दे दो, लॉकर में रखवा दूँ गीता (ननद) बैंक जा रही है।" 
कविता को अच्छा नहीं लगा फिर भी उसने एक-एक करके ससुराल की ज्वेलरी उतार दी। कंघा लेकर बाल बनाने लगी।
सासु माँ बोली, "अरे! ये भारी-भारी ज्वेलरी सब देदो, क्या रोज में ये सब पहनोगी??"
कविता बोली, "लेकिन ये मेरी माँ…"
कविता की बात पूरी होने से पहले ही सासु माँ बोल उठी, अरे! "लाॅकर में रखवाले के लिए ही तो माँग रही हूँ, कौनसा तुझसे छीन रही हूँ, मुझे मालूम है तेरी माँ ने दिया है।"
कविता ने बिना कुछ बोले सब ज्वेलरी उतार कर दे दी। 
सासु माँ ने ले जाकर अपनी अलमारी रख दी।
बहू के मैके वाले आए तो सासु माँ ने बिना ज्वैलरी के ही विदा कर दिया। कविता ने कहा भी, "माँ मुझे मैके की ज्वेलरी तो पहनने को दे दो।"
सासु माँ बोली, "तू हर चीज में तो लापरवाही करती है, ज्वेलरी खो देगी।"
कविता अंदर ही अंदर दुखी मन से मैके आ गई।
माँ ने ज्वेलरी के बारे में सवाल किया??
कविता ने टाल दिया, अरे! "माँ मुझे कहाँ पसंद है ज्वेलरी पहनना।"
माँ ने सोचा समय के साथ सब ठीक हो जाएगा इसलिए तूल नहीं दिया।
भाभी ने ऐक-एक बात का जायजा लिया, प्यार से सिर पर हाथ रख कर पूछा तो कविता ने सब कुछ बता दिया।
कविता का पति लेने आया तो भाभी ने ताना मार दिया, "कम से कम मैके की ज्वेलरी तो उसे पहनने देते, आपने सब रख ली, सब पूछ रहे हैं कि सास ने ऐसे ही भेज दिया, ससुराल की भी तो नाक नीची होती है।"
कविता का पति कमल बोला, "मुझे इस बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं है।"

रास्ते में कमल ने कविता से कहा, "अगर ज्वेलरी माँ ने नहीं दी तो यहाँ शिकायत करने की क्या जरूरत थी। तुम बहुएं ऐसी ही होती हैं जब तक सास की शिकायत नमक-मिर्च लगाकर न करलो 
तब तक पेट में रोटी नहीं जाती।"

कमल के मुँह से ऐसे शब्द सुन कर कविता दंग रह गई। उसे उससे ये उम्मीद नहीं थी।
वह बस उसका मुँह ताकती रह गई।
सीधी-साधी लाडली कविता मैके में सिर्फ प्यार मिला, ऊँची आवाज में किसी ने बात भी नहीं की।
पति की बातों का जबाव भी नहीं दे पाई। सिर झुकाकर टप-टप आँसू बहाती रही।

घर पहुँच कर कमल माँ से बोला, "इसे जेवर क्यों नहीं दिया पहनने को, इसकी भाभियाँ मुझे ताने मार रही थीं, मैं कभी ससुराल नहीं जाऊँगा।"

सासु माँ ने बहुत क्लेश किया कि मैके में ससुराल की बुराई करती है, और भी बहुत कुछ खरी खोटी सुनाई। ज्वैलरी कभी भी उसे नहीं दी गई। जब भी ननद आती, विदा के तौर पर एक आइटम सासु माँ निकाल कर कविता के हाथ में रख देती, ले बहू अपनी ननद को विदा करदे।

सारे घर का काम-धाम निपटाने, सासु माँ का हर हुक्म बजाने के बाद भी वह उससे कभी खुश नहीं हुई हर काम में कमियां निकालना और ताने देना रोज का काम था। पति सब कुछ देख कर अनजान था, कविता से कहता जैसा माँ चाहे वैसा करो, क्यों क्लेश को मौका देती हो।

कविता बेचारी रोने के सिवा कुछ न कर पाती।
इसी माहौल में 8 महीने बीत गए। उसकी ननद घर आ गई। 
भाई और माँ से बोली, "तुमने कार देने का वादा किया था, ससुराल वालों ने कहा है कार के बिना लौट कर मत आना।"
कमल कार की व्यवस्था में लग गया किन्तु कोई बात नहीं बनी। इसी तरह 3 माह बीत गए। 
अब तक तो सिर्फ सासु माँ ताने मारती थी अब ननद भी उनका साथ देने के लिए मौजूद थी। 
ननद के ससुराल वाले बार-बार फोन करते कार लेकर कब लौट रही है??
उन्होंने कमल को भी फोन किया।
उसने कहा कोशिश कर रहा हूँ, जल्दी ही कार के साथ बहन को विदा कर दूंगा।

कविता 6-7 माह गर्भ से थी। उसे किसी से मदद की उम्मीद तो थी नहीं। तानों की आवाज घर में गूंजती रहती। कविता बुरी तरह थक जाती। 
अचानक कविता की तबियत बिगड़ी, कमल उसे डॉक्टर के पास ले गया। डाॅक्टर ने कहा, "तुम्हारी पत्नी बहुत कमजोर है, सातवां महीना चल रहा है। इसका ख्याल रखिए इसे पूर्ण बैड रेस्ट की आवश्यकता है।"
"ठीक है डाॅक्टर" कहकर कमल घर आ गया।
कविता से बोला, "अपना खयाल रखो।"
कविता ने कोई जवाब नहीं दिया, "जो दर्द न समझे उसे बताना क्या??" सब कुछ देखकर जो अनजान है उससे कुछ कहने की आवश्यकता ही क्या है??

कविता का हर दिन नर्क सा गुजर रहा था। 
समय पूर्व ही उसके लेबर पेन शुरू हो गए उसे अस्पताल ले जाया गया, प्री-मैच्योर बेटा पैदा हो गया।
प्री-मैच्योर होने के कारण कुछ समय अधिक देखभाल में बीता, किन्तु बेटे के आने से कविता 
की तो दुनिया सुहानी हो गई। अब उसे किसी की परवाह नहीं, कौन क्या कह रहा वह कुछ सुनती ही नहीं। वह और उसका बेटा उसने अपनी दुनिया यहीं तक समेट ली, खुश रहने लगी।

कमल ने एक दिन मौका देखकर कविता से कहा, "गीता कब तक ससुराल में बैठी रहेगी, गाड़ी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है, क्यों न तुम्हारी गाड़ी जो तुम्हारे भाइयों ने दी है, उसे देकर गीता को ससुराल भेज दें।"

कमल की बात सुनकर कविता को बहुत आश्चर्य हुआ, वह उसका मुँह ताकने लगी, उसे कुछ जवाब न सूझा।

कमल बोला, "जवाब दो।"
कविता बोली, "तुम क्या चाहते हो??"
कमल बोला, "यही कि गाड़ी उसे दे दी जाए, हमारे हालात ठीक होंगे तब हम गाड़ी खरीद लेंगे।"
कविता बोली, "जब मन बना ही चुके हो तो मुझसे क्या पूछना??"

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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6 Comments

HARSHADA GOSAVI

17-Jul-2023 06:31 PM

Nice

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जी अति सुन्दर कहानी।

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Renu Singh"Radhe "

03-Jul-2023 08:04 PM

कहानी अच्छी है पर अधूरी लग रही है माफ कीजिएगा 🙏

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